कहां नंदागे चरौंटा भाजी अउ गुरमटिया के भात।
लागय सुग्घर खोटनी भाजी, खोटनी बरी संग भात।
अब तो सुरता रहिगे, रंधनी घर के सेवाद सिरागे।
सि रतोन बात ताय। तइहा-तइहा के बरी-बिजौरी ल खाय बर जे जुन्ना मनखे बांचे हे ते मन तरस गे हे। डुबकी, चीला, बूंदिया, भजिया के कढी घला आज रंधनी घर ले परा गे हें। जे दू-चार झन सियनहा बांचे हे ते मन कहूं खाय के सउख कर पारही त आज के बोहो-बेटी मन चिटपोट नइ करयं अउ बपुरा सियनहा जीभ ल चांटत अपन पानी ल बचा लेथे।
गवइंहा खान-पान म बरी-बिजौरी के अलगे चिन्हारी रहिस हे। बरी-बिजौरी के परसंग चले हे त पापर ल भुला जाबो त नई बनही। पहिली पहर चरवइया राउत मन घर म पापर के पिसान ल कूटैं। देवारी के समे रहय पापर के सुरता चरवाहा ल आगे-
मालिक घर मैं पापर कूटेंव खायेंव मिरचा के झोर हो…
बरी-बिजौरी गोसइन ह सेंकिस मालिक के उड़य सोर हो…
अब थोकन बरी-बिजौरी पापर बनाय के ढंग ल घला जान लन। आज तो इंकर नाव ल नइ जानय फेर बनाहीं काला? तभो ले अपन जुन्ना जिनिस ल सुरता करे म अपन खान-पान ल जाने के ओढ़हर तो मिलथे।
बरी बनाय बर रखिया के बनावा के कोंहड़ा के पहिली वोला मंजरी म करो लेवा। पानी म सफा धो के उरीददार के पीठी (उरीद दार ल रात के पानी में भिगो दे जाथे। बिहनहा वोला धो के वोकर फोकला ल निकाल ले जाथे। तहां धोवाय दर ल सील-लोढ़ा म पीस दे जाथे चिक्कन के। उही ल पीठी कइथें) मिला के वोमा अदरक-नून, मेथी भाजी, मिरचाहा बनाय बर होय त मिरचा घला पीस के डार दय। अउ बने फेंट लय तहां गोल-गोल लाड़ू बांध कर हथौरी म लोक-लोक के पर्रा म मढ़ावत जाय। एक पर्रा- दू पर्रा जतका बनाय के होय ततका बना के घाम म बने खड़खड़ ले सुखो दे जाथे तहां बरनी म भर के रख दे जाथें। जब खाय के मन करिस बरी के कढ़ी बना लय, दार म डार दय अउ खाय के बेरा म खावयं वोकर सेवादे अलग रथे।
इही किसम छोटे बरी, ननकी बरी, खोटनी बरी, लाई बरी घला बनाय जाथे। खोंटनी बरी ल अंगठा, तर्जनी अउ मंझोत के अंगरी के सहारा म खोंटे जाथे जब जुखा जाथे। तब नान-नान टोर के धर लेथें। पहली किसनहा मन चरौटा भाजी, गुर्रु भाजी, तिनपनिया भाजी म येला डार के बने चुरपुर-चुरपुर बनावय अउ सहरा-सहरा के खावय। अब तो
कहां नंदागे चरौटा भाजी अउ गुरमटिया के भात।
लागय सुघ्घर खोटनी भाजी, खोटनी बरी संग खात॥
बिजौरी ल घला अइसनेहे बनाय जाथे। येला बनाय बर पीढ़ी म थोकन तिली, रखिया बीजा-सेवाद बर थोकन नून-मिरचा डार के चेपटी-चेपटी बना के पर्रा म सुखोय जाथे। सुखाय के बाद म तेलई-अंगरा म सेंक के बने कुर्रुम-कुर्रुम पापर साही खाय जाथे।
एक ठन हाना कहे जाथे-”पापर बिन थारी सुखा” पापर अड़बड़ सेवाद वाला जिनिस आय। कथें ये ह पाचक अउ भूख ल बढ़ाथे। तभे तो मारवाड़ी समाज के थारी म आखिरी बेरा म पापर पोरसे जाथे। वोकर ऊपर घीव, हल्का जीरा अउ पीसे मसाला के थोकन छिड़काव वोकर सवाद ल बढ़ा देथे। त ऐहू ल जानलन पापर कइसे बनाय जाथे।
पापर कई किसम के बनथे- 1) उजरुवा पापर उरीद दार के धोंवासी के 2) मूंग के पापर मूंगदार के धोंवासी के 3) चना के पापर चनादार के धोंवासी 4) बटुरा के पापर बटुरा दार के धोंवासी के 5) तिली के पापर उरीददार के धोंवासी।
पापर बनाय बर दार मन ल धो के सुखो दे जाथे दार ल दांत म चाब के देखय, किटरिंग ले करय त जान ले सुखा गे। तहां चिरचिरा राख, नइते तिली राख नइते, पापर खार ल पानी म निच्चट चुरो देवय वो मा नून डार के चुरोय पानी में धोवांसी ल पिसवा के सान के घन नइते हथोड़ा म लस के आवत ले कूट के वोकर तुपई कर लय तहां नान-नान लोई बना के बेलना-पीढ़ा में बेल के सुखो दय। तिली के पापर बनाय बर होय त लोई म थोक-थोक तिली छपक के बेल लय! तिली के पापर बनगे। पापर घला ल तेलई नइते अंगरा म सेंक के खाय जाथे। उपरोक्त जतका बरी-पापर बनाय के विधि बताय गे हे ते मा बनिया-बाह्मन अउ चंद्राकर समाज के माइलोगिन म अड़बड़ चतुरा होथें।
तइहा के बात ल बइहा लेगे। हमर जुन्ना सेवाद ल आधुनिकता ह लील दिस। गोठ-बात नंदा गे। मया-पीरा बिसरागे अउ हमर रंधनी घर के सेवाद ह घला सिरागे। समे के बलिहारी हे। खान-पान हमर बिचार ब्यौहार सबे ल बदल दिस
अम्मा होगे मम्मी अउ ददा होगे डैड।
सास ह सिसकत बइठे हे, बोहो होगे हेड॥
राघवेन्द्र अग्रवाल
खैरघटा बलौदाबाजार